सस्ते कर्ज से नुकसान! - डॉ. संदीप कटारिया








क्राइम रिफॉर्मर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संदीप कटारिया ने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों में की गई कटौती के बाद अगर पर ईएमआइ में राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो ठहर जाइए, साथ ही ऐसे ग्राहक भी सतर्क हो जाएं जिन्होंने किसी बैंक से कोई कर्ज नहीं ले रखा क्योंकि असर उनपर भी पड़ना तय है ऐसा इसलिए क्योंकि कर्ज की दर का रेपो रेट से सीधे जुड़ने के बाद कर्ज सस्ता करना अगर बैंकों की मजबूरी बन जाएगा तो इसका असर दरअसल उन ग्राहकों पर भी पड़ेगा जिनकी जमा बैंक खाते में है यानी सस्ता कर्ज जरूरी नहीं कि फायदेमंद ही हो इससे नुकसान होने के भी रास्ते खुलते हैं।


इसकी सबसे ताजा नजीर बना देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ओर से लिया गया निर्णय। बैंक ने मार्जिनल कॉस्ट लैंडिंग रेट में कटौती कर दी। यह वह दर है जो विभिन्न तरह के कर्ज (होम लोन, पर्सनल लोन, ऑटो लोन) की दर तय करने का आधार बनता है।


एमसीएलआर में कटौती का सीधा मलतब है कि जिन लोगों ने एमसीएलआर आधारित कर्ज ले रखे हैं उनकी ईएमआइ में कटौती तय है। एसीबीआइ  की ओर से एमसीएलआर में छठी कटौती है। 10 बेसिस प्वाइंट की ताजा कटौती के बाद एक साल के लोन की दर 8.15 से घटकर 8.05 हो जाएगी, लेकिन इसके साथ ही बैंक ने जमा पर भी ब्याज की दरों में बदलाव कर इन्हें कम कर दिया है।


एसबीआइ ने ऐसे बचत खातों पर जिनमें बकाया एक लाख रूपए तक है उनमें ब्याज की दर 3.5 फीसदी से घटाकर 3.25 फीसदी कर दी है। इसके अलावा एक साल से ज्यादा और दो साल से कम की सावधि जमा (एफडी) पर ब्याज की दर 10 बेसिस प्वाइंट कम करके 6.4 फीसदी कर दी है। वरिश्ठ नागरिकों को इस अवधि पर मिलने वाले ब्याज में भी कमी आई है। वरिश्ठ नागरिकों को अब इस एफडी पर 6.9 फीसदी की दर से ब्याज मिलेगा।


मंदी के दौर में जब लोग आय न बढ़ने या रोजगार जाने से परेषान हैं तब बचत पर ब्याज का घटना नई मुसीबत है। आरबीआइ ने यह संभावना जताई है कि रेपो रेट में आने वाले दिनो में भी कटौती  की गुंजाइश है ऐसे में अगर ब्याज दरों में कटौती का यह सिलसिला जारी रहा था तो बचत पर मिलने वाला ब्याज और कम हो जाएगा।


कमजोर बैलेंसषीट पर बैठे बैंक महंगे पूंजी से सस्ते कर्ज नहीं दे सकते हैं ऐसे में उन्हें सस्ती पूंजी की व्यवस्था करनी होगी। बैंकों का व्यापार जमा आधारित होता है, ऐसे में जमा पर ब्याज कम करके बैंक अपनी पूंजी सस्ती तो कर सकती हैं लेकिन अगर जमा ही नहीं बचेंगी तो क्या होगा? वरिश्ठ नागरिक बैंकों पर भरोसा करके अपने रिटायरमेंट के फंड को बैंकों में रखते हैं लेकिन जब महीने भर बाद ब्याज कम आएगा तो वे अन्य विकल्पों के बारे में क्यों नहीं सोचेगें? ऐसे समय में जब आम जनता की बचत दषक के निचले स्तर पर है ऐसे में बचत हतोत्साहित करने वाले निर्णय आत्मघाती साबित हो सकते हैंं


एक बात और, कर्ज सस्ता होने के बाद भी लेने वालों की संख्या में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। हालिया आंकड़े आंकड़े यह बताते हैं कि रिटेल से लेकर इंडस्ट्री तक कर्ज लेने वालों की संख्या में वृद्धि दर कमजोर पड़ी है। सस्ते कर्ज से अर्थव्यवस्था को सहारा मिले या न मिले लेकिन बचत पर कैंची चलने से बैंकों की जमा पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।